Monday, November 10, 2025

संबंधों की परिभाषा, || रुके, देखें और सुने ||

रुके, देखे और सुने
इन तीनों का योग
था,
 मनुष्यों का पहला धर्म,
पहला स्पर्श, पहली पहचान।

जो रुकना नहीं जानते,
वे केवल मिलते हैं
जुड़ते नहीं।
क्योंकि जो जुड़ना चाहता है,
वह पहले अपनी रफ़्तार रख देता है
दूसरे की साँसों के बराबर।

संबंध समय नहीं माँगते,
सिर्फ़ एक सचेत पल बुलाते हैं
जिसमें आप सच में उपस्थित हों।

देखना
सिर्फ़ चेहरा नहीं,
उस पर चढ़ी थकान,
हल्की-सी चिंता,
और मुस्कान के पीछे छिपा
अनबोला संघर्ष।

सुनना
सिर्फ़ शब्दों की ध्वनि नहीं,
उस दिल की धकधक
जो आवाज़ से पहले उठती है।

कई बार “हूँ” भी संवाद होता है,
और कई बार पूरी बात सुनकर भी
लोग कुछ नहीं सुनते।
रिश्ते इन्हीं दोनों के फर्क पर टिके होते हैं।

जो रुक कर सुनता है,
वही मिट्टी को आकार दे पाता है।
जो देख कर समझता है,
वही पेड़ उगा पाता है।
और जो बिना बोले साथ निभाता है,
वही पेड़ को छाया तक ले जाता है।t

संबंध शब्दों से नहीं
इरादों से टिकते हैं।
दिल की सच्ची नमी ही
हर पत्ते को हरा रखती है।

समय सब ठीक कर देता है।
दुनिया यह मानती है
पर सच यह है
समय नहीं,
नीत, नीयत और नर्मी
रिश्तों को थामती है।

जो मन में जगह दे दे,
वह दिल में घर बना लेता है।
जो मौन में सुन ले,
वह जीवनभर समझ में बस जाता है।

रुके, देखे और सुने
इसी क्रम में जन्म लेते हैं
विश्वास, अपनापन, और प्रेम।

और जब यह तीनों जन्म लेते हैं
तो दूरी भी मिटती है,
अहं भी पिघलता है,
और संबंध एक ऐसी डोर बन जाते हैं
जो समय के रस्साकशी में
कभी नहीं टूटता है।
     ........ सर्वेश
     (०९/११/२५)

Friday, November 7, 2025

पिता, बाप,

मैंने अपनी धूप समेटकर तेरे हिस्से की छाँव बनाई,
खुदके सपनों को मोड़कर तेर
सपनो की राह बनाईं।
आज तू ऊँचाई छूता है तो आँखें भर आती हैं मेरी,
क्योंकि हर बेटे की उड़ान में, बाप ने कहीं अपनी जड़ें लगाईं।
               ..... सर्वेश

Friday, October 31, 2025

सच्ची मित्रता

मित्र वही जो रोक दे, जब तू राह भुलाए,
मीठे बोल न झूठ के, सच के दीप जलाए।
    ....सर्वेश दुबे
    २८- १० - २०२५

Thursday, October 30, 2025

विरह का दर्द

वर्षा ऋतु में मनवा बोले,
प्रिय बिन मन न लागे।
दो घड़ी की हुई विरह मे,
दर्द बरस का  लागे।
  ...... सर्वेश
३०/१०/२०२५

Friday, October 24, 2025

प्रेम कविता, हमने फूल भेजा

हमने उनको फूल भेजा तो उन्होंने भी गुलाब भेज दिया,

दिल की बात समझे शायद, हमें जवाब भेज दिया।

उनकी आँखों में चमकती है जैसे कोई रौशनी,
ख़्वाब देखा हमने और उन्होंने ख़्वाब भेज दिया।

फ़ासले मिट गए चुपके से उनकी यादों में,
हमने साँस ली मोहब्बत की, उन्होंने हिजाब भेज दिया।

जाने कैसी मोहब्बत है कि असर गहरा हुआ,
हमने लिखी तड़प तो उन्होंने इतराब भेज दिया।

अब तो "सर्वेश" की शायरी भी उनके दिल तक जा पहुँची,
हमने अशआर कहे तो उन्होंने किताब भेज दिया।
       .....सर्वेश दुबे
     ०२- ०९ - २०२५

शुभ दिवाली

 दीपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएं 

जगमग दीप जले हर आँगन में, 
हर कोना मुस्काए,
माँ लक्ष्मी के चरण पड़े , 
खुशियों के फूल खिलाए।

बुद्धि और सुख के दाता,
श्री गणपति  पूजे जाएँ, 
 कृपा से उनकी, सारे विघ्न-विकार दूर हो जाए

सोने सी चमके हर हथेली,  
हर हाथ कर्म से उजियारा हो,
हर मन में प्रेम का दीप जले, 
ना किसी भी घर में अंधियारा हो।

 कण कण धरा का रोशन हो,
हर खेत स्वर्ण की भांति सजे
हर दिल में सूरज आशा का 
घर घर में मंगल गान बजे

बाजे बजें, हँसी बिखेरे,
 दीपक चमके घर घर मे,
 माँ लक्ष्मी सुख समृद्धि दे
गाँव गाँव और शहर शहर में

सपने सबके पूरे हों 
और जीवन में उल्लास रहे
स्नेह सुगंध हम मिल फैलाए 
और आपस में विश्वास रहे।

माँ लक्ष्मी की कृपा रहे
श्री गणपति का आशीर्वाद,
मेरी यही शुभकामना सबको 
जीवन में ना हो कोई अवसाद ।
   ... सर्वेश दुबे
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विरह ,मीत,वेदना

 मीत विरह की वेदना              ऊर्जा से भरपूर.......

मिलने को मैं उड़ चला            लाख गगन हो दूर.......

@सर्वेश

स्वदेशी अपनाओ

सामान खरीदे वही
जो बना हो यही,
स्वदेशी समान धन ही नहीं सम्मान भी बढ़ाएगा।
तभी तो भारत जगमगाएगा 

माटी की खुशबू से जुड़ा हर धागा,
कर्मठ हाथों का परिश्रम इसमें जागा,
हर खरीद एक नवदीप जलाएगा,
देश का गौरव और ऊँचा उठाएगा।

हर कतरे में मेहनत का रंग,
हर बूँद में श्रम का संग,
किसान, कारीगर का सपना सजाएगा,
भारत का तिरंगा हर दिशा में लहराएगा।

विदेशी चमक भले लुभाए नज़र को,
पर मिटा न पाए देश की जड़ को,
आओ मिलकर प्रण ये दोहराएँ,
स्वदेशी अपनाएँ, भारत को सजाएँ।

विदेशी दिखावे से दिल न भरें,
अपनी मिट्टी से रिश्ते न तोड़ें,
गाँव–गली का हुनर जगमगाएगा,
स्वदेशी अपनाओगे भविष्य सँवर जायेगा।

चौपाल से लेकर शहर की दुकान,
हर जगह बजे स्वदेशी का गान,
रोज़गार बढ़े, हर घर मुस्काएगा,
आत्मनिर्भर भारत तभी तो बन पाएगा

आओ मिल सब स्वदेशी अपनाए 
भारत के मान को मिल हम  बढ़ाए
आओ मिल हम एक स्वर में गाएँ,
भारत माँ का मान हरपल बढ़ाएँ।

   ....सर्वेश दुबे

Monday, September 15, 2025

Engineer's Day अभियंता दिवस ,

गणना में रस घोलकर, सपनों को दे रूप।
अभियंता जग का करे, नवसृजन अनूप।।

ईंट गगन को छू सके, सेतु मिलाएँ पार।
प्रगति-पथ पर चल पड़े, जग के सब परिवार।।

लोहे में भी प्राण भर, ध्वनि में लाए राग।
निर्माणों से जगमगाए, जीवन का हर भाग।।

विज्ञान और कला मिले, कर्म बने उत्सव।
अभियंता की साधना, रचे सृष्टि नव-स्वर।।

पुल नभ से धरती जुड़ें, धरा से सागर-तट।
अभियंता से हो सके, भविष्य का नव-वट।।
          ..... सर्वेश 

अभियंता दिवस की अशेष शुभकामनाएं💐💐

Sunday, September 14, 2025

हिंदी दिवस की shubhkamnaaye

मैं भारत मां की शान हूँ,
मैं हिन्दी, भारत की जान हूँ।
माँ के चरणों का वरदान हूँ,
मैं हिंदी, भारत मां की पहचान हूँ।।

वेदों की वाणी से उपजी,
गीता की अमर गाथा हूँ।
मीरा-सूर-तुलसी का रस,
कबीर की साखी साथा हूँ।
मैं हिंदी, भारत मां की पहचान हूँ।।

झाँसी की रण-चेतना हूँ,
आज़ादी की हुंकार हूँ।
भगत-सुखदेव की गूँज अमर,
क्रांति का पावन जयकार हूँ।
मैं हिंदी, भारत मां की पहचान हूँ।।

गंगा-यमुना की धारा हूँ,
खेत-खलिहान की बयार हूँ।
गाँव-नगर का संगीत बनी,
भारत की आत्मा अपार हूँ।
मैं हिंदी, भारत मां की पहचान हूँ।।

महादेवी की करुणा हूँ,
प्रेमचंद की पहचान हूँ।
साहित्य का अनुपम उत्सव,
संस्कृति का सम्मान हूँ।
मैं हिंदी, भारत मां की पहचान हूँ।।
      ....सर्वेश दुबे

हिंदी दिवस की अशेष शुभकामनाएं 💐

Saturday, September 13, 2025

संघर्ष ने रोका नहीं, सँवारा है

रोशनी की खोज में अंधेरे में भटकता रहा,
साये ने राह दिखाई मगर मंज़िल न दिखी कहता रहा ।
खुद की लौ जलानी पड़ी तब जाकर समझा,
उजाला बाहर नहीं, दिल के अंदर ही है छिपा।
ठोकरों ने सिखाया कि गिरकर भी बढ़ना है,
हर दर्द ने जताया कि सपनों को गढ़ना है।
जब तक साँसों में हिम्मत की धड़कन रहेगी,
रात कितनी भी गहरी हो, सुबह जरूर ढलेगी।
अब राहें खुद मुझसे रौशनी माँगती हैं,
मेरी कहानी से उम्मीदें जागती हैं।
अंधेरे ने मुझे रोका नहीं, सँवारा है,
मैं वही दीप हूँ जो तूफ़ानों को भी गवारा है।

 – सर्वेश

Friday, September 12, 2025

नैन से नैन

नैन से नैन मिलेंगे तो अधरों का मिलना तय है,
मिल दो अस्तित्व  एक बने, तब दोनों का खोना तय है।

चाँदनी रात में जब रूह का राग जागेगा,
संगम का हर पल अमृत-सा पीना तय है।

 आँच जुदाई की कितनी भी बढ़ जाए,
मिलन की बारिश से उसका बुझना तय है।

वक्त की आँधियाँ चाहें जितनी भी  बहे,
प्रेम के दीपक का उजियारा देना तय है।

रात की जद में तेरी यादें जब दस्तक देती हैं,
सपनों के गलियारे में तेरा उतरना तय है।

तेरे बिना अधूरी लगती है हर सांस की धड़कन,
तुझसे मिलने पर जीवन का सँवरना तय है।

तेरी मुस्कान से बहारों का मौसम खिल उठता है,
सुनसान दिल में फूलों का महकना तय है।

तेरे लफ़्ज़ों में मिलता है मुझे खुदा का नूर,
तेरे इश्क़ में रूह का तृप्त होना तय है।

तेरे बिना हर रंग अधूरा, तेरे संग बहारें पूरी,
इश्क़ के मौसम में दिल का गुलशन खिलना तय है।

जब हाथ से हाथ छुए तो धड़कन बढ़ना तय है,
पलकों की छाँव तले सपनों का पलना तय है।

सर्वेश के अल्फ़ाज़ हैं बस इतना जान लो,
आत्मा से आत्मा मिले तो अनन्त का होना तय है।

     .... सर्वेश दुबे

Thursday, September 11, 2025

हम तो एहसास हैं ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

अब किसी नाम की मुहरों में नहीं आएंगे,
हम तो एहसास हैं  ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

जो भी टूटा, उसे हमने ख़ुद समेटा है,
हम वो शीशा हैं जो टुकड़ों में नहीं आएंगे।

इश्क़ की राह में लुटे थे तो क्या हुआ,
अब किसी सूली, किसी फाँसे में नहीं आएंगे।

जिसने छोड़ा हमें अंधेरों की चाह में,
उसके लिए फिर उजाले में नहीं आएंगे।

अब न आँसू बचें हैं, न कोई शिकवा,
हम दुआ हैं — बददुआओं में नहीं आएंगे।

हमसे अब रूह का रिश्ता ही बनाना,
जिस्म की, लिबास की परिभाषे में नहीं आएंगे।

जिसे खोया था 
कभी भीड़ में बेवजह,
उसे फिर से तलाशे  नहीं आएंगे।
......सर्वेश दुबे

आदरणीय शिक्षक

शब्दों के दीप जलाते हैं,
अज्ञान के तमस मिटाते हैं।
मन की मिट्टी को गढ़कर के,
भविष्य की मूर्ति बनाते हैं।

पथरीली राहों पर चलना,
उन्होंने ही सिखलाया है।
गिरते-पड़ते सपनों को,
हाथ पकड़कर उठलाया  है।

ज्ञान नहीं बस बाँटा उन्होंने,
जीवन जीना भी सिखलाया है।
हर कठिनाई में हौसलों का,
नव दीप उन्होंने जलाया है।

शिक्षक कोई साधारण नहीं,
वो तो विधि का वरदान हैं।
धरती पर जो देव सम आए,
वो सचमुच "गुरु भगवान" हैं।

उनकी छाया में खिलते हैं,
जीवन के सच्चे गुणगान।
शिष्य जहाँ भी जाते हैं,
रहे साथ गुरु मंत्र महान।🙏🏻💐
     ... सर्वेश दुबे
 ०५-०९-२०२५

जीवन ज्योति

नील नभ के नयन में स्वप्न-दीप टिमटिमाए,
चाँदनी के करों से आँसुओं के रत्न सजाए।

काल-रेत की लहरें हर निशानी बहा ले गईं,
किन्तु पवन के पंखों पर दिशा नई लिख आई।

काँटों की करधनी में कमल-गंध मुस्काई,
वज्र से कठोर वेदना भी मृदु वीणा बन पाई।

तमस-गुफ़ाओं में जब छाया का प्रलय बरसा,
दीपक ने हृदय से प्रभा का आँगन रच डाला।

अश्रु-अंबर से झरे मोती बनकर हर पीड़ा,
विरह-शारदीय शशि-सा, निर्मल हँसी बिखेर लाई।

तूफ़ानों की गर्जना में पतवार गीत गाती,
वज्र-वृष्टि की चोटों को हृदय कमल सहलाता।

मृत्यु की मौन वीणा पर जीवन की तान गूँजी,
शूलों की शैया पर भी कुसुम-गंध महकी।

भाग्य के बंधन जब नागपाश से लिपटे,
धैर्य ने वज्र बनकर हर पाश तोड़ डाले।

स्वप्न-खंडित हज़ार हुए, पर आस्था न टूटी,
ज्योतिर्मय आत्मा से अंधकार झुक गया।

इतिहास यदि पूछे मेरी व्यथा का लेखा,
कहेगा  राख से भी स्वर्ण किला गढ़ा मैंने।
....सर्वेश दुबे
    ०८/०९/२०२५