पहला प्रेम कभी ना भूले,
चाहे कितना जोर लगा लो,
यादों के संदूक पे चाहे,
कितने भी तुम ताले डालो।
वो कोरे कागज़ पर लिखा,
पहला उसका नाम निराला,
जैसे तपती धूप में कोई,
शीतल चंदन की माला।
वक्त की परतें जम जाती हैं,
चेहरे बदल ही जाते हैं,
नये मुसाफ़िर जीवन की,
राहों में मिल ही जाते हैं।
पर वो जो पहली दस्तक थी,
वो गूँज कहीं रह जाती है,
भीड़ भरी इस दुनिया में भी,
तन्हा हमको कर जाती है।
वह साथ बिताए लम्हें भी,
तस्वीर बने रह जाते हैं,
वो बिन बात के उसका हँस देना, सब याद हमें रह जाते हैं।
न मका मिला न मिली है मंजिल,
बस एक अधूरा किस्सा है,
पर सच तो ये है कि वो ही,
रूह का अब भी हिस्सा है।
आज भी जब बारिश की,
पहली बूंद जो गिरती हैं,
मिट्टी की सोंधी खुशबू में,
वही यादें फिरती रहती हैं।
भूलना चाहो तो भूले कैसे,
वो तो रगों में बहता है,
इंसान भले ही बदल जाए,
पर अहसास वही तो रहता है।
उसे पाने की हसरत नहीं अब,
न खोने का कोई गम है,
वो बस एक महक है यादों की,
जो आज भी आँख में नम है।
.... सर्वेश


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