रोशनी की खोज में अंधेरे में भटकता रहा,
साये ने राह दिखाई मगर मंज़िल न दिखी कहता रहा ।
खुद की लौ जलानी पड़ी तब जाकर समझा,
उजाला बाहर नहीं, दिल के अंदर ही है छिपा।
ठोकरों ने सिखाया कि गिरकर भी बढ़ना है,
हर दर्द ने जताया कि सपनों को गढ़ना है।
जब तक साँसों में हिम्मत की धड़कन रहेगी,
रात कितनी भी गहरी हो, सुबह जरूर ढलेगी।
अब राहें खुद मुझसे रौशनी माँगती हैं,
मेरी कहानी से उम्मीदें जागती हैं।
अंधेरे ने मुझे रोका नहीं, सँवारा है,
मैं वही दीप हूँ जो तूफ़ानों को भी गवारा है।
– सर्वेश
No comments:
Post a Comment