Saturday, January 24, 2009

माँ पर कविता

माँ
एक ऐसी रचना जो सब पर भारी है
उसी की सृष्टि ये दुनिया सारी है

माँ पर लिखू कविता मेरे
मित्र ने कि की मुझसे ऐसी कामना
पर माँ को उतार सकू कविताओ मे
ऐसे शब्दों से हो सका न सामना

फ़िर मै हताश निराश हो शब्दो को
ढुढने का खत्म कर दिया प्रयास
और खो गया बचपन की उस दुनिया मे
जब मेरी माँ ही मेरे लिये है सबसे खास

माँ के वात्सल्य भाव का ऐसी है भूमिका
चित्र ना उतार सके बनी न ऐसी तूलिका
माँ के अनन्त उपकार को तू कभी भी मत भुला
तोल सके जिससे तू बन सकी ना वो तुला

माँ असीम दर्द से भरे उन नौ महिने को
अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण मानती है
हमारे आखों मे बहने वाला आसू
सुख या दर्द के है वो सब जानती है

मां के विश्वास ने मुझमे
आत्मविश्वास का बीज बो दिया
उसकी त्याग ने सही रास्ते पे लाकर
मुझे इन्सान बना दिया

क्षमा करो ये मित्र मुझे तुम,
लिख सका ना माँ पर कविता
शब्दों मे मै ढुढ सका ना
ऐसी होती माँ की ममता ॥

1 comment:

Anonymous said...

Apne itna kuch likh diya ki kavita ki koi b jurart nhi hai


Bahut accha likha aapne....
Best of Luck For future