Thursday, September 11, 2025

हम तो एहसास हैं ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

अब किसी नाम की मुहरों में नहीं आएंगे,
हम तो एहसास हैं  ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

जो भी टूटा, उसे हमने ख़ुद समेटा है,
हम वो शीशा हैं जो टुकड़ों में नहीं आएंगे।

इश्क़ की राह में लुटे थे तो क्या हुआ,
अब किसी सूली, किसी फाँसे में नहीं आएंगे।

जिसने छोड़ा हमें अंधेरों की चाह में,
उसके लिए फिर उजाले में नहीं आएंगे।

अब न आँसू बचें हैं, न कोई शिकवा,
हम दुआ हैं — बददुआओं में नहीं आएंगे।

हमसे अब रूह का रिश्ता ही बनाना,
जिस्म की, लिबास की परिभाषे में नहीं आएंगे।

जिसे खोया था 
कभी भीड़ में बेवजह,
उसे फिर से तलाशे  नहीं आएंगे।
......सर्वेश दुबे

आदरणीय शिक्षक

शब्दों के दीप जलाते हैं,
अज्ञान के तमस मिटाते हैं।
मन की मिट्टी को गढ़कर के,
भविष्य की मूर्ति बनाते हैं।

पथरीली राहों पर चलना,
उन्होंने ही सिखलाया है।
गिरते-पड़ते सपनों को,
हाथ पकड़कर उठलाया  है।

ज्ञान नहीं बस बाँटा उन्होंने,
जीवन जीना भी सिखलाया है।
हर कठिनाई में हौसलों का,
नव दीप उन्होंने जलाया है।

शिक्षक कोई साधारण नहीं,
वो तो विधि का वरदान हैं।
धरती पर जो देव सम आए,
वो सचमुच "गुरु भगवान" हैं।

उनकी छाया में खिलते हैं,
जीवन के सच्चे गुणगान।
शिष्य जहाँ भी जाते हैं,
रहे साथ गुरु मंत्र महान।🙏🏻💐
     ... सर्वेश दुबे
 ०५-०९-२०२५

प्रेम कविता, हमने फूल भेजा

हमने उनको फूल भेजा तो उन्होंने भी गुलाब भेज दिया,

दिल की बात समझे शायद, हमें जवाब भेज दिया।

उनकी आँखों में चमकती है जैसे कोई रौशनी,
ख़्वाब देखा हमने और उन्होंने ख़्वाब भेज दिया।

फ़ासले मिट गए चुपके से उनकी यादों में,
हमने साँस ली मोहब्बत की, उन्होंने हिजाब भेज दिया।

जाने कैसी मोहब्बत है कि असर गहरा हुआ,
हमने लिखी तड़प तो उन्होंने इतराब भेज दिया।

अब तो "सर्वेश" की शायरी भी उनके दिल तक जा पहुँची,
हमने अशआर कहे तो उन्होंने किताब भेज दिया।
       .....सर्वेश दुबे
     ०२- ०९ - २०२५

जीवन ज्योति

नील नभ के नयन में स्वप्न-दीप टिमटिमाए,
चाँदनी के करों से आँसुओं के रत्न सजाए।

काल-रेत की लहरें हर निशानी बहा ले गईं,
किन्तु पवन के पंखों पर दिशा नई लिख आई।

काँटों की करधनी में कमल-गंध मुस्काई,
वज्र से कठोर वेदना भी मृदु वीणा बन पाई।

तमस-गुफ़ाओं में जब छाया का प्रलय बरसा,
दीपक ने हृदय से प्रभा का आँगन रच डाला।

अश्रु-अंबर से झरे मोती बनकर हर पीड़ा,
विरह-शारदीय शशि-सा, निर्मल हँसी बिखेर लाई।

तूफ़ानों की गर्जना में पतवार गीत गाती,
वज्र-वृष्टि की चोटों को हृदय कमल सहलाता।

मृत्यु की मौन वीणा पर जीवन की तान गूँजी,
शूलों की शैया पर भी कुसुम-गंध महकी।

भाग्य के बंधन जब नागपाश से लिपटे,
धैर्य ने वज्र बनकर हर पाश तोड़ डाले।

स्वप्न-खंडित हज़ार हुए, पर आस्था न टूटी,
ज्योतिर्मय आत्मा से अंधकार झुक गया।

इतिहास यदि पूछे मेरी व्यथा का लेखा,
कहेगा  राख से भी स्वर्ण किला गढ़ा मैंने।
....सर्वेश दुबे
    ०८/०९/२०२५