Thursday, September 11, 2025

हम तो एहसास हैं ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

अब किसी नाम की मुहरों में नहीं आएंगे,
हम तो एहसास हैं  ज़ंजीरों में नहीं आएंगे।

जो भी टूटा, उसे हमने ख़ुद समेटा है,
हम वो शीशा हैं जो टुकड़ों में नहीं आएंगे।

इश्क़ की राह में लुटे थे तो क्या हुआ,
अब किसी सूली, किसी फाँसे में नहीं आएंगे।

जिसने छोड़ा हमें अंधेरों की चाह में,
उसके लिए फिर उजाले में नहीं आएंगे।

अब न आँसू बचें हैं, न कोई शिकवा,
हम दुआ हैं — बददुआओं में नहीं आएंगे।

हमसे अब रूह का रिश्ता ही बनाना,
जिस्म की, लिबास की परिभाषे में नहीं आएंगे।

जिसे खोया था 
कभी भीड़ में बेवजह,
उसे फिर से तलाशे  नहीं आएंगे।
......सर्वेश दुबे

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