Friday, October 31, 2025

सच्ची मित्रता

मित्र वही जो रोक दे, जब तू राह भुलाए,
मीठे बोल न झूठ के, सच के दीप जलाए।
    ....सर्वेश दुबे
    २८- १० - २०२५

Thursday, October 30, 2025

विरह का दर्द

वर्षा ऋतु में मनवा बोले,
प्रिय बिन मन न लागे।
दो घड़ी की हुई विरह मे,
दर्द बरस का  लागे।
  ...... सर्वेश
३०/१०/२०२५

Friday, October 24, 2025

प्रेम कविता, हमने फूल भेजा

हमने उनको फूल भेजा तो उन्होंने भी गुलाब भेज दिया,

दिल की बात समझे शायद, हमें जवाब भेज दिया।

उनकी आँखों में चमकती है जैसे कोई रौशनी,
ख़्वाब देखा हमने और उन्होंने ख़्वाब भेज दिया।

फ़ासले मिट गए चुपके से उनकी यादों में,
हमने साँस ली मोहब्बत की, उन्होंने हिजाब भेज दिया।

जाने कैसी मोहब्बत है कि असर गहरा हुआ,
हमने लिखी तड़प तो उन्होंने इतराब भेज दिया।

अब तो "सर्वेश" की शायरी भी उनके दिल तक जा पहुँची,
हमने अशआर कहे तो उन्होंने किताब भेज दिया।
       .....सर्वेश दुबे
     ०२- ०९ - २०२५

शुभ दिवाली

 दीपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएं 

जगमग दीप जले हर आँगन में, 
हर कोना मुस्काए,
माँ लक्ष्मी के चरण पड़े , 
खुशियों के फूल खिलाए।

बुद्धि और सुख के दाता,
श्री गणपति  पूजे जाएँ, 
 कृपा से उनकी, सारे विघ्न-विकार दूर हो जाए

सोने सी चमके हर हथेली,  
हर हाथ कर्म से उजियारा हो,
हर मन में प्रेम का दीप जले, 
ना किसी भी घर में अंधियारा हो।

 कण कण धरा का रोशन हो,
हर खेत स्वर्ण की भांति सजे
हर दिल में सूरज आशा का 
घर घर में मंगल गान बजे

बाजे बजें, हँसी बिखेरे,
 दीपक चमके घर घर मे,
 माँ लक्ष्मी सुख समृद्धि दे
गाँव गाँव और शहर शहर में

सपने सबके पूरे हों 
और जीवन में उल्लास रहे
स्नेह सुगंध हम मिल फैलाए 
और आपस में विश्वास रहे।

माँ लक्ष्मी की कृपा रहे
श्री गणपति का आशीर्वाद,
मेरी यही शुभकामना सबको 
जीवन में ना हो कोई अवसाद ।
   ... सर्वेश दुबे
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विरह ,मीत,वेदना

 मीत विरह की वेदना              ऊर्जा से भरपूर.......

मिलने को मैं उड़ चला            लाख गगन हो दूर.......

@सर्वेश

स्वदेशी अपनाओ

सामान खरीदे वही
जो बना हो यही,
स्वदेशी समान धन ही नहीं सम्मान भी बढ़ाएगा।
तभी तो भारत जगमगाएगा 

माटी की खुशबू से जुड़ा हर धागा,
कर्मठ हाथों का परिश्रम इसमें जागा,
हर खरीद एक नवदीप जलाएगा,
देश का गौरव और ऊँचा उठाएगा।

हर कतरे में मेहनत का रंग,
हर बूँद में श्रम का संग,
किसान, कारीगर का सपना सजाएगा,
भारत का तिरंगा हर दिशा में लहराएगा।

विदेशी चमक भले लुभाए नज़र को,
पर मिटा न पाए देश की जड़ को,
आओ मिलकर प्रण ये दोहराएँ,
स्वदेशी अपनाएँ, भारत को सजाएँ।

विदेशी दिखावे से दिल न भरें,
अपनी मिट्टी से रिश्ते न तोड़ें,
गाँव–गली का हुनर जगमगाएगा,
स्वदेशी अपनाओगे भविष्य सँवर जायेगा।

चौपाल से लेकर शहर की दुकान,
हर जगह बजे स्वदेशी का गान,
रोज़गार बढ़े, हर घर मुस्काएगा,
आत्मनिर्भर भारत तभी तो बन पाएगा

आओ मिल सब स्वदेशी अपनाए 
भारत के मान को मिल हम  बढ़ाए
आओ मिल हम एक स्वर में गाएँ,
भारत माँ का मान हरपल बढ़ाएँ।

   ....सर्वेश दुबे