Friday, November 7, 2025

पिता, बाप,

मैंने अपनी धूप समेटकर तेरे हिस्से की छाँव बनाई,
खुदके सपनों को मोड़कर तेर
सपनो की राह बनाईं।
आज तू ऊँचाई छूता है तो आँखें भर आती हैं मेरी,
क्योंकि हर बेटे की उड़ान में, बाप ने कहीं अपनी जड़ें लगाईं।
               ..... सर्वेश