यदि तु प्रस्तर है तो
मै भी हू जल,
लिये आस प्रेम का तुझ्से
तुझे भिगोउ मै हरपल
निर्मल है प्रकृति मेरी
पर अनगिनत आवृत्ति मेरी
घिस घिस तुझको रेत बना दू
अपने मे बस तुझे मिला लू
Monday, June 29, 2009
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मन मे उठने वाले तरगो को शब्दों मे समेटना
1 comment:
आपकी सब कवितायेँ भली लगी इन दिनों ऐसी कवितायेँ देखता हूँ तो बड़ा अच्छा लगता है अभी आपके ब्लॉग से परिचय हुआ है घनिष्ठता भी शीघ्र होगी इसी आशा में शुभकामनाये
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