माँ
एक ऐसी रचना जो सब पर भारी है
उसी की सृष्टि ये दुनिया सारी है
माँ पर लिखू कविता मेरे
मित्र ने कि की मुझसे ऐसी कामना
पर माँ को उतार सकू कविताओ मे
ऐसे शब्दों से हो सका न सामना
फ़िर मै हताश निराश हो शब्दो को
ढुढने का खत्म कर दिया प्रयास
और खो गया बचपन की उस दुनिया मे
जब मेरी माँ ही मेरे लिये है सबसे खास
माँ के वात्सल्य भाव का ऐसी है भूमिका
चित्र ना उतार सके बनी न ऐसी तूलिका
माँ के अनन्त उपकार को तू कभी भी मत भुला
तोल सके जिससे तू बन सकी ना वो तुला
माँ असीम दर्द से भरे उन नौ महिने को
अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण मानती है
हमारे आखों मे बहने वाला आसू
सुख या दर्द के है वो सब जानती है
मां के विश्वास ने मुझमे
आत्मविश्वास का बीज बो दिया
उसकी त्याग ने सही रास्ते पे लाकर
मुझे इन्सान बना दिया
क्षमा करो ये मित्र मुझे तुम,
लिख सका ना माँ पर कविता
शब्दों मे मै ढुढ सका ना
ऐसी होती माँ की ममता ॥
Saturday, January 24, 2009
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1 comment:
Apne itna kuch likh diya ki kavita ki koi b jurart nhi hai
Bahut accha likha aapne....
Best of Luck For future
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