ये कविता मैने कालेज मे विदाई समारोह मे अपने सीनियर के लिये बनाया था
जिसका नाम कल्पना था
एक दिन हमने,
कल्पना और यथार्थ मे कई ग्राफ ख़ीचे
यथार्थ को पाया ऊपर कल्पना को नीचे
मेरे इस अद्धयन के आधार पर
मेरी बात को धयान से सुनिएगा
कभी भी जालिम कल्पना के
चक्कर मे मत पडियेगा,
बरना आसमान से गिरेगे
खजूर मे लटकेगे
अगर यथार्थ छोडा तो जिन्दगी भर भटकेगे
इस लिए कल्पना को छोडिये
यथार्थ को पकडिये
मेरे इन बातो मे तनिक भी नही स्वार्थ है
आप सभी जानते है सर्वेश ही यथार्थ है
Monday, February 2, 2009
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