मीत विरह की वेदना ऊर्जा से भरपूर.......
मिलने को मैं उड़ चला लाख गगन हो दूर.......
@सर्वेश
मन मे उठने वाले तरगो को शब्दों मे समेटना
मीत विरह की वेदना ऊर्जा से भरपूर.......
मिलने को मैं उड़ चला लाख गगन हो दूर.......
@सर्वेश
जब मैं खुद पिता की भूमिका में आया,
तभी तो मैं अपनी पिता की भूमिका को समझ पाया।
पिता के भी एहसास माँ के एहसासो से कम थोड़े है।
पिता के अहसास तो एक पतली किन्तु सख्त चादर ओढ़े है।
माँ मेरी एक सफलता पर तो खुशी के आंसू बहाती है,
पूरे मोहल्ले और रिश्तेदारों को बताती है ।
तब पिता का कुछ ना बोलना, मन को मेरे दुःखता था
व्यग्रता से सोचता था कि वो कैसे बन्दे है
पर बाद में पता चलता है की,
मेरी हर सफलता के नीचे उन्ही के तो कंधे है ।
लगती है चोट मुझे तो माँ दौड़ कर आती है
अपने स्नेह का लेप वो लगाती है।
लेकिन वहीं पर पिता की दृढ़ता हमको नही भाति है,
लेकिन सत्य यही वही सख्ती हम को बहुत मजबूत बनाती है ।।
माँ संस्कार तो पिता दिशा देते है।
दिशा होती है तो गति मिलती है,
और जब गति होती है प्रगति मिलती है। । @सर्वेश २०/०६/२०२१